अध्याय 12: ऊष्मागतिकी (Thermodynamics)

परिचय

**ऊष्मागतिकी** भौतिकी की वह शाखा है जो ऊष्मा, कार्य, तापमान और ऊर्जा के बीच संबंधों का अध्ययन करती है। यह उन प्रक्रियाओं से संबंधित है जहाँ ऊर्जा एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती है, और यह प्रणाली के गुणों जैसे दाब, आयतन, तापमान और आंतरिक ऊर्जा को कैसे प्रभावित करती है। यह अध्याय ऊष्मागतिकी के मूलभूत नियमों, ऊष्मा इंजनों, प्रशीतक (रेफ्रिजरेटर), और एंट्रॉपी की अवधारणाओं को विस्तार से बताएगा, जो ऊर्जा रूपांतरण की दक्षता और व्यवहार्यता को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

12.1 ऊष्मागतिकीय निकाय (Thermodynamic System)

**ऊष्मागतिकीय निकाय** ब्रह्मांड का वह भाग है जिसे अध्ययन के लिए चुना जाता है। निकाय के बाहर के हिस्से को **परिवेश (Surroundings)** कहा जाता है। निकाय और परिवेश को अलग करने वाली सीमा **वास्तविक या काल्पनिक** हो सकती है। निकाय तीन प्रकार के होते हैं:

12.2 ऊष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम (Zeroth Law of Thermodynamics)

यह नियम **तापमान** की अवधारणा को परिभाषित करता है। यह बताता है कि यदि दो निकाय (A और B) एक तीसरे निकाय (C) के साथ अलग-अलग तापीय संतुलन (thermal equilibrium) में हैं, तो वे दोनों निकाय (A और B) भी एक दूसरे के साथ तापीय संतुलन में होंगे। तापीय संतुलन का अर्थ है कि निकायों के बीच कोई शुद्ध ऊष्मा प्रवाह नहीं होता है, और उनका तापमान समान होता है।

12.3 आंतरिक ऊर्जा (Internal Energy - U)

**आंतरिक ऊर्जा** किसी निकाय में उसके अणुओं की यादृच्छिक, अव्यवस्थित गति और विन्यास से जुड़ी कुल ऊर्जा है। इसमें अणुओं की गतिज ऊर्जा (स्थानांतरीय, घूर्णी, कंपन) और उनकी स्थितिज ऊर्जा (आणविक बलों के कारण) शामिल होती है। आंतरिक ऊर्जा एक **निकाय का अवस्था फलन (state function)** है, अर्थात यह केवल निकाय की वर्तमान स्थिति (दाब, आयतन, तापमान) पर निर्भर करती है, न कि उस पथ पर जिससे वह उस स्थिति तक पहुंचा है।

12.4 ऊष्मागतिकी का पहला नियम (First Law of Thermodynamics)

ऊष्मागतिकी का पहला नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम का एक कथन है। यह बताता है कि किसी निकाय को दी गई ऊष्मा ($Q$) निकाय की आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि ($\Delta U$) और निकाय द्वारा किए गए कार्य ($W$) के योग के बराबर होती है: $$ Q = \Delta U + W $$ जहाँ:

यह नियम स्पष्ट करता है कि ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है, केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

Illustration showing a gas in a cylinder with a piston, demonstrating heat input, work done, and internal energy change.

12.5 ऊष्मागतिकीय प्रक्रम (Thermodynamic Processes)

विभिन्न प्रकार के ऊष्मागतिकीय प्रक्रम होते हैं, जिनमें से प्रत्येक में एक विशिष्ट चर स्थिर रखा जाता है:

12.6 ऊष्मा इंजन और प्रशीतक (Heat Engines and Refrigerators)

ऊष्मा इंजन (Heat Engine)

ऊष्मा इंजन एक ऐसा उपकरण है जो ऊष्मा ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित करता है। यह एक उच्च तापमान स्रोत (hot reservoir) से ऊष्मा ($Q_1$) लेता है, कुछ कार्य ($W$) करता है, और शेष ऊष्मा ($Q_2$) को निम्न तापमान स्रोत (cold reservoir) को त्याग देता है। $$ W = Q_1 - Q_2 $$ एक ऊष्मा इंजन की दक्षता ($\eta$) है: $$ \eta = \frac{W}{Q_1} = 1 - \frac{Q_2}{Q_1} $$

प्रशीतक (Refrigerator)

प्रशीतक एक ऐसा उपकरण है जो कम तापमान वाले स्रोत से ऊष्मा निकालता है और इसे उच्च तापमान वाले स्रोत में स्थानांतरित करता है, जिसके लिए बाहरी कार्य ($W$) की आवश्यकता होती है। यह ऊष्मा इंजन के विपरीत कार्य करता है। एक प्रशीतक के प्रदर्शन गुणांक (Coefficient of Performance - COP) को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जाता है: $$ COP = \frac{Q_2}{W} = \frac{Q_2}{Q_1 - Q_2} $$ जहाँ $Q_2$ निम्न तापमान स्रोत से निकाली गई ऊष्मा है और $Q_1$ उच्च तापमान स्रोत को दी गई ऊष्मा है।

12.7 ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम (Second Law of Thermodynamics)

ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम ऊष्मा के प्रवाह की दिशा और ऊर्जा रूपांतरण की सीमाओं को बताता है। इसके दो मुख्य कथन हैं:

12.8 एंट्रॉपी (Entropy - S)

**एंट्रॉपी** निकाय की अव्यवस्था या बेतरतीबी का माप है। यह एक अवस्था फलन है। ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम यह भी बताता है कि एक विलगित निकाय की कुल एंट्रॉपी या तो बढ़ती है या स्थिर रहती है; यह कभी घटती नहीं है। ब्रह्मांड की एंट्रॉपी लगातार बढ़ रही है, जिसका अर्थ है कि ब्रह्मांड अधिक अव्यवस्थित हो रहा है। $$ \Delta S = \frac{\Delta Q}{T} $$ जहाँ $\Delta S$ एंट्रॉपी में परिवर्तन है, $\Delta Q$ निकाय को दी गई ऊष्मा है, और $T$ निरपेक्ष तापमान है।

12.9 उत्क्रमणीय और अनुत्क्रमणीय प्रक्रम (Reversible and Irreversible Processes)

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)

I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।

  1. ऊष्मागतिकी क्या है?

    ऊष्मागतिकी भौतिकी की वह शाखा है जो ऊष्मा, कार्य, तापमान और ऊर्जा के बीच संबंधों का अध्ययन करती है।

  2. ऊष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम क्या परिभाषित करता है?

    ऊष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम तापमान की अवधारणा को परिभाषित करता है।

  3. आंतरिक ऊर्जा क्या है?

    आंतरिक ऊर्जा किसी निकाय में उसके अणुओं की यादृच्छिक, अव्यवस्थित गति और विन्यास से जुड़ी कुल ऊर्जा है।

  4. समतापी प्रक्रम में कौन सा चर स्थिर रहता है?

    समतापी प्रक्रम में तापमान स्थिर रहता है।

  5. ऊष्मा इंजन की अधिकतम दक्षता कितनी हो सकती है?

    ऊष्मा इंजन की अधिकतम दक्षता 100% नहीं हो सकती है, यह हमेशा 100% से कम होती है (केल्विन-प्लैंक कथन के अनुसार)।

II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।

  1. खुला, बंद और विलगित निकाय में अंतर स्पष्ट करें।

    खुला निकाय ऊर्जा और द्रव्यमान दोनों का आदान-प्रदान करता है। बंद निकाय केवल ऊर्जा का आदान-प्रदान करता है। विलगित निकाय न तो ऊर्जा और न ही द्रव्यमान का आदान-प्रदान करता है।

  2. ऊष्मागतिकी के पहले नियम का क्या महत्व है?

    ऊष्मागतिकी का पहला नियम ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत का एक रूप है। यह बताता है कि किसी निकाय को दी गई ऊष्मा उसकी आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि और निकाय द्वारा किए गए कार्य के योग के बराबर होती है।

  3. रुद्धोष्म प्रक्रम को परिभाषित करें।

    रुद्धोष्म प्रक्रम वह होता है जिसमें निकाय और परिवेश के बीच कोई ऊष्मा का आदान-प्रदान नहीं होता है ($Q=0$)। यह बहुत तेजी से होता है ताकि ऊष्मा स्थानांतरण के लिए पर्याप्त समय न हो।

  4. एंट्रॉपी क्या है और इसका क्या अर्थ है?

    एंट्रॉपी निकाय की अव्यवस्था या बेतरतीबी का माप है। ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम बताता है कि एक विलगित निकाय की एंट्रॉपी हमेशा बढ़ती है या स्थिर रहती है, जो ब्रह्मांड की बढ़ती अव्यवस्था को दर्शाती है।

III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।

  1. ऊष्मागतिकी के पहले नियम को उदाहरणों सहित समझाएँ और इसकी सीमाओं पर भी चर्चा करें।

    ऊष्मागतिकी का पहला नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम का एक मूलभूत कथन है जो ऊष्मागतिकीय प्रक्रमों में ऊर्जा के विभिन्न रूपों के बीच संबंध को परिभाषित करता है। यह बताता है कि किसी निकाय को दी गई कुल ऊष्मा ($Q$) का उपयोग उसकी आंतरिक ऊर्जा ($\Delta U$) को बढ़ाने और परिवेश पर कुछ कार्य ($W$) करने में किया जाता है। गणितीय रूप से, इसे $Q = \Delta U + W$ के रूप में व्यक्त किया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है; इसे केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, जब एक पिस्टन सिलेंडर में गैस को गर्म किया जाता है, तो दी गई ऊष्मा गैस की आंतरिक ऊर्जा को बढ़ाती है (तापमान बढ़ जाता है) और पिस्टन को धक्का देकर कार्य करती है।

    हालांकि ऊष्मागतिकी का पहला नियम ऊर्जा संरक्षण की गारंटी देता है, इसकी अपनी सीमाएँ हैं। यह नियम ऊर्जा रूपांतरण की दिशा पर कोई जानकारी नहीं देता है। उदाहरण के लिए, यह नहीं बताता कि ऊष्मा स्वाभाविक रूप से ठंडी वस्तु से गर्म वस्तु की ओर क्यों नहीं बहती है, या कार्य पूरी तरह से ऊष्मा में क्यों परिवर्तित हो सकता है लेकिन ऊष्मा पूरी तरह से कार्य में क्यों नहीं। यह उन प्रक्रमों की संभाव्यता या स्वतः स्फूर्तता (spontaneity) पर भी कोई प्रतिबंध नहीं लगाता है। इन सीमाओं को दूर करने के लिए ऊष्मागतिकी के दूसरे नियम की आवश्यकता होती है, जो ऊर्जा रूपांतरण की दिशा और गुणवत्ता से संबंधित है, और एंट्रॉपी की अवधारणा को पेश करता है।

  2. ऊष्मागतिकी के दूसरे नियम के केल्विन-प्लैंक और क्लॉसियस कथनों को समझाएँ और वे कैसे संबंधित हैं।

    ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम प्रकृति में ऊर्जा रूपांतरणों की दिशा और सीमाओं पर प्रतिबंध लगाता है। इसके दो मुख्य और समतुल्य कथन हैं: **केल्विन-प्लैंक कथन** और **क्लॉसियस कथन**। केल्विन-प्लैंक कथन ऊष्मा इंजनों से संबंधित है और कहता है कि किसी भी चक्रीय प्रक्रम में, एक ऐसे ऊष्मा इंजन का निर्माण करना असंभव है जो एक ही तापमान वाले स्रोत से ऊष्मा को अवशोषित करके उसे पूरी तरह से कार्य में परिवर्तित कर दे। इसका सीधा सा मतलब है कि किसी भी ऊष्मा इंजन की दक्षता 100% नहीं हो सकती है; कार्य में परिवर्तित न होने वाली कुछ ऊष्मा हमेशा निम्न तापमान वाले सिंक को त्यागनी पड़ती है। यह दर्शाता है कि ऊष्मा का पूरी तरह से कार्य में रूपांतरण संभव नहीं है।

    दूसरी ओर, **क्लॉसियस कथन** प्रशीतकों और ऊष्मा के स्वतः प्रवाह से संबंधित है। यह कहता है कि किसी भी स्वतः होने वाले प्रक्रम में, ऊष्मा कम तापमान वाली वस्तु से उच्च तापमान वाली वस्तु में बिना किसी बाहरी कार्य के स्थानांतरित नहीं हो सकती है। दूसरे शब्दों में, ऊष्मा स्वाभाविक रूप से हमेशा उच्च तापमान से निम्न तापमान की ओर प्रवाहित होती है; इसे ठंडे से गर्म की ओर भेजने के लिए हमें ऊर्जा (कार्य) लगानी होगी, जैसा कि प्रशीतक या एयर कंडीशनर में होता है। दोनों कथन एक दूसरे के समतुल्य हैं। यदि कोई एक कथन गलत साबित होता है, तो दूसरा भी गलत साबित होगा। ये कथन हमें बताते हैं कि ब्रह्मांड में ऊर्जा के रूपांतरणों की एक स्वाभाविक दिशा होती है और पूरी तरह से कुशल ऊर्जा रूपांतरण संभव नहीं है, जो एंट्रॉपी की बढ़ती प्रकृति से भी संबंधित है।


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